आरोपों को लेकर राज्य बाल सरंक्षण आयोग की टीम ने की कार्यवाही, मतांतरण समेत अन्य आरोप भी आए सामने
जांच टीम के महिला सदस्यों के एकाएक बीमार होने पर नहीं हो सकी बालिकाओं को दूसरी जगह भेजे जाने की कार्यवाही

दमोह। धर्मांतरण समेत अन्य आरोपों में चर्चित रही मिशनरी संस्था आधारशिला संस्थान एक बार फिर आरोपों के घेरे में है। इस बार संस्था में कार्यरत एक कर्मचारी पर नावालिग के शोषण के आरोप लगे है। वहीं आरोप यह भी है कि मामले को दबाने का प्रयास किया गया,लेकिन इस दौरान बाल संरक्षण आयोग के पास मामले की शिकायत पहुंचने पर रविवार को राज्य बाल संरक्षण आयोग सदस्य ओकांर सिंह, निवेदिता शर्मा के साथ बाल कल्याण समिति दमोह से एडवोकेट दीपक तिवारी, मुकेश दुबे व दीपमाला सैनी ने संस्थान पहुंचकर अपनी जांच की और इस दौरान बच्चों के मतांतरण से जुड़ी बातें भी सामने आई है। हालाकि इस संंबंध में अभी तक आधारशिला संस्थान की ओर से कोई भी सफाई सामने नहीं आई है और जांच टीम की माने तो मामले में पुलिस व प्रशासन की भूमिका भी संदिग्ध है।
यह है मामला
मामले के संबंध में राज्य बाल संरक्षण आयोग सदस्य ओंकार सिंह ने बताया कि आधारशिला संस्थान द्वारा संचालित बाल भवन से एक नावालिग को गोद लिए जाने की कार्यवाही की गई थी और बालिका उसे एडॉप्ट करने बाले परिवार के साथ चेन्नई भी चली गई थी। बताया जा रहा है कि कुछ दिन पूर्व बालिका को गोद लेने वाले परिवार ने शिकायत दर्ज कराई कि आधार शिला संस्थान में कार्यरत एक कर्मचारी जिसका नाम डेनियल बताया जा रहा है उसके द्वारा बालिका को लगातार मैसेज किए जा रहे है। शिकायत सामने आने के बाद आरोपी संस्था द्वारा आनन फानन में महिला बाल विकास से संपर्क करते हुए आरोपी के विरुद्ध जबलपुर नाका चौकी में ३१ मई को आवेदन दिया गया जिसकी जांच शुरु की गई। इस दौरान मामले की जानकारी राज्य बाल संरक्षण आयोग को मिली और उनके द्वारा मामले की जांच शुरु कर दी गई। वहीं इस घटना के बाद बालिका को गोद लेने बाले परिवार ने एडॉप्शन की प्रक्रिया खारिज कर दी है जिसके बाद बालिका जल्द ही बापस दमोह आएगी।
जाँच के दौरान सामने आई खामियां
आधार शिला संस्थान में जांच के लिए पहुंची टीम को अपनी जांच में कई खामियां और साथ ही साथ कई ऐसी स्थितियां भी सामने आई है जिससे संस्था नए आरोपों से घिर गई है। बताया जा रहा है कि यह मामला सामने आने के बाद ३१ मई को आवेदन दिया गया और पुलिस द्वारा मामला ९ मई को दर्ज किया गया। वहीं संस्थान द्वारा आवेदन दिए जाने के बाद भी आरोपी कर्मचारी वहां इस दौरान कार्यरत रहा और ६ मई को ही उसे संस्था से अलग किया गया है। वहीं इस मामले में एक तथ्य यह भी है कि गोद लेने की प्रक्रिया पूरी तरह से गुप्त रखी जाती है और लोगों को यह भी जानकारी नहीं दी जाती कि गोद लिया गया बालक किसके पास और कहां गया है। इसके बाद भी आरोपी के पास बालिका की पूरी जानकारी होना और उसके नए मोबाइल नम्बर आदि होना भी इस प्रकिया को नियमानुसार गुप्त ना रखा जाना प्रतीत कराता है जिसकी जांच की जा रही है। वहीं आरोपी को वॉयस हॉस्टल का बॉर्डन बताया जा रहा है लेकिन उसका गल्र्स हॉस्टल में भी आना जाना था, जो एक गंभीर लापरवाही दर्शित हो रहा है।
फिर सामने आए मतांतरण के आरोप
वहीं जांच के दौरान एक बार फिर संस्थान पर मतांतरण से जुड़े आरोपों के कठघरे में है। दरअसल वहां पर रहने बाले कई छात्रों के पास बाइबल सहित मिशनरी धार्मिक साहित्य बरामद हुआ है जो मसीही समाज से नहीं है, ऐसे में यह माना जा रहा है कि बच्चों को धर्मिक शिक्षा देकर उन्हें मतांतरण की ओर धकेला जा रहा था। इसके अलावा संस्थान जिस बाल भवन को आवासीय स्कूल बताकर बच्चों को रखे जाने की बात कह रही है जांच टीम को उक्त बाल भवन में हॉस्टल या आवासीय संस्थान होने की अनुमति संबंधी दस्तावेज नहीं मिले है जिससे यहां बच्चों को रोकना और उनका रहना भी संदिग्ध बताया जा रहा है।

जांच टीम ने माना सुरक्षित नहीं नावालिग
जांच टीम को अपनी जांच में संस्थान में जिस तरह के हालात मिले है, उससे वह यह मान रहे है कि यह संस्थान नावालिगों और खासकर बालिकाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। ऐसे में जांच टीम द्वारा यहां रहने वाली बालिकाओं को अन्यत्र भेजे जाने की बात कही गई है। हालाकि यह कार्यवाही रविवार को ही पूर्व होनी थी, लेकिन बाल संरक्षण आयोग दमोह के समस्त सदस्यों के मौके पर मौजूद ना होने के चलते यह प्रक्रिया अधूरी रह गई। दरसअल जांच टीम में बाल कल्याण समिति दमोह की ओर से एडवोकेट दीपक तिवारी, एडवोकेट मुकेश दुबे सहित समिति अध्यक्ष प्रेक्षा पाठक व सदस्य दीपमाला सैनी को भी शमिल होना था। जहां कार्यवाही के समय अध्यक्ष प्रेक्षा पाठक द्वारा शहर से बाहर होने की बात कही गई, वहीं सदस्य दीपमाला सैनी द्वारा तबियत खराब होने की स्थिति में वह जांच को बीच में ही छोडक़र चली गई जिसके चलते सदस्यों का कोरम पूरा नहीं हो सका और यह कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। उल्लेखनीय है कि पूर्व में भी इस संस्था पर राष्ट्रीय बाल अधिकार व संरक्षण आयोग अध्यक्ष की जांच के दौरान अध्यक्ष प्रेक्षा पाठक द्वारा मोबाइल से संस्था को कार्यवाही की सूचना दिए जाने के आरोप लगे थे, जिस पर उन्हें अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो की फटकार भी सहनी पड़ी थी।
पुलिस व प्रशासन की भूमिका पर भी सबाल
सामने आए इस नए मामले और जांच में मिले तथ्य के बाद पुलिस व संबंधित विभाग की भूमिका पर भी सबाल उठने लगे है। जांच टीम के सदस्यों की माने तो मामले में संस्थान ही आरोपी है और इस बात को दरकिनार करते हुए पुलिस ने आरोपी संस्थान की ओर से ही मामला दर्ज कर कर्मचारी को आरोपी बनाकर पॉक्सो एक्ट सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर लिया। वही दूसरी ओर आधारशिला संस्थान में छात्रावास की अनुमति ना होने के बाद भी वहां नावालिगों के रहने की स्थिति की जांच महिला बाल विकास विभाग द्वारा की जानी चाहिए थी जो यहां देखने को नहीं मिली है, ऐसे में अब वरिष्ठ अधिकारी इस मामले में संज्ञान लेकर क्या कार्यवाही करते है यह देखना होगा।
नावालिग से जुड़े मामले की जांच के लिए टीम यहां आई थी। मौके पर कई ऐसी खामियां सामने आई है जिससे संस्था की कार्यप्रणाली संदिग्ध है और ऐसी स्थिति में संबंधित विभाग व पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सबाल खड़े हो रहे है।
ओंकार सिंह, सदस्य राज्य बाल संरक्षण आयोग
विभागीय कार्यप्रणाली से संबंधित कमियों की कोई भी जानकारी फिलहाल मुझे नहीं है। जब भी जांच टीम की रिपोर्ट मेरे सामने आती है और उसमें यह बात उल्लेखित होती है तो नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी।
मयंक अग्रवाल, कलेक्टर दमोह

सहयोगी संवाददाता
चतुर्भुज दुबे बिट्टू