हाथी-घोड़े और रथ पर सवार होकर सुंदर झांकियों के साथ 8 घंटे में पूर्ण हुई माता रुक्मणि शोभयात्रा

गाजे-बाजे, आतिशबाजी और नृत्य में दिखा श्रृद्धालुओं का उत्साह जहां-जहां से निकला माता रुक्मणि का रथ पलक-पांवड़े बिछा कर लोगों ने किया स्वागत

दमोह। शुक्रवार को नगर में राधा अष्टमी का दिन एक नया उत्सव लेकर आया। 21 वर्ष 7 माह से ज्यादा समय बाद माता रुक्मणि कुंडलपुर में अपने प्रचीन और ऐतिहासिक मठ में वापस लौटीं। इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने करीब 25 हजार से ज्यादा श्रृद्वालु, जो दमोह से पटेरा और कुंडलपुर तक शोभायात्रा में शामिल हुए। तय कार्यक्रम अनुसार आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारियों की उपस्थिति में नगर के रानी दमयंती बाई संग्रहालय से माता रुक्मणि की प्रतिमा को शोभयात्रा में विशेष रूप से तैयार वाहन में विराजमान किया गया और फिर ढोल नगाड़ों और आतिशबाजी के साथ शोभायात्रा को वहां से आगे बढ़ाया गया।

देखते ही बन रही थी छटा

शोभायात्रा दौरान नगर के प्रमुख अखाड़ों के द्वारा अपनी कलाओं का प्रदर्शन किया गया। अनके स्थानों से आई भजन मंडलियों के कलाकार, रथों पर राधा-कृष्ण और रुक्मणि का रूप धरे कलाकार, दलदल घोड़ी बने कलाकार, शामिल वेदाचार्य सहित हाथी और घोड़े शोभयात्रा को मनोहर रूप प्रदान कर रहे थे। कलाकारों द्वारा शोभयात्रा का जीवंत वर्णन किया जा रहा था। साथ में पीत वस्त्र धारण किए महिलांए व पुरुष और जनप्रतिनिधियों व राजनेताओं का समूह शोभायात्रा के महत्व को दर्शा रहा था। कदम कदम पर विभिन्न समाजों, संगठनों द्वारा शोभायात्रा का पुष्प वर्षा व प्रसाद वितरण करते हुए स्वागत किया गया। लोगों का उत्साह इतना था कि तेज धूप और मौसम बदलने पर हुई झमाझम बारिश भी लोगों को डिगा नहीं सकी और लोग माँ रुक्मणि को उनके धाम पर पहुंचाने के लिए आगे बढ़ते रहे।

बांदकुपर में हुआ पहला पड़ाव

यात्रा का पहला पड़ाव तीर्थ क्षेत्र जागेश्वर धाम बांदकपुर में हुआ। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटैल ने सर्वप्रथम देव जागेश्वर नाथ तथा माँ भगवती का पूजन अर्चन व अभिषेक किया। उसके बाद यात्रा पटेरा मार्ग होते हुए शाम करीब 5 बजे अपने अंतिम पड़ाव कुंडलपुर स्थित रुक्मणि मठ पहुंची। जहां पुष्प वर्षा के बीच श्रद्धालु अपने कांधों पर माता रुक्मणि को मठ में ले गए। वहां मौजूद पुजारी व वेदाचार्यों की उपस्थिति में प्रतिमा को पुन: उनके स्थान पर विराजमान किया गया। आयोजन में पूर्व वित्तमंत्री जयंत मलैया, विधायकगण अजय टंडन, पीएल तंतुवाय, धर्मेन्द्र सिंह लोधी तथा रामबाई परिहार, राहुल सिंह, नरेन्द्र बजाज, आरके पटले, संजय राय, लखन पटैल, उमादेवी खटीक, नरेन्द्र दुबे, मोंटी रैकवार, रश्मि वर्मा, गरिमा त्रिपाठी सहित पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों की उपस्थिति रही।

यह आमजन की आस्था की जीत है

प्रहलाद पटेल

केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटैल ने बगैर किसी पूर्व योजना के लोगों के इस उत्साह और सहयोग को अभूतपूर्व और आमजन की आस्था की जीत बताया। उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि माँ रुक्मणि ने इस निमित्त के लिए मुझे चुना। उन्होंनेइसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आाभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी नीतियों के चलते ही माता रुक्मणि की प्रतिमा एक बार फिर अपने पुराने स्थान पर विराजित हुई।

की जाएगी विशेष सुरक्षा : प्रतिमा की प्राचीन व ऐतिहासिक महत्ता होने के मद्देनजर ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा विशेष सुरक्षा इंतजाम भी किए गए है यहां सतत रूप से सुरक्षा गार्ड की तैनाती रहेगी। मठ परिसर को भी बाउंड्री वॉल बना से संरक्षित किया गया है। सूत्रों के अनुसार, प्रतिमा स्थापना के पूर्व एएसआई द्वारा अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया गया था और प्रतिमा व मठ की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बाद ही प्रतिमा को यहां पुर्नस्थापित किया गया है।

भगवान कृष्ण से जुड़ा है मठ का इतिहास: कुंडलपुर के रुक्मणि मठ का इतिहास भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा है। यहां विराजमान माता रुक्मणि भगवान श्री कृष्ण की पत्नि थी और पौराणिक कथाओं और इतिहासकारों की माने तो यह वही स्थान है जहां से भगवान श्री कृष्ण से माता रुक्मणि का हरण किया था और हरण के दौरान उनका कुंडल यहां गिर गया था। इसके चलते इसका प्रचीन नाम कुंडलगिरी था जो समय के साथ कुंडलपुर हो गया। इसके अलावा श्रीमद् भागवत के हिंदी रूपांतरण कहे जाने बाले सुखसागर ग्रंथ में विदर्भ देश के राजा भीष्मक के राज्य की राजधानी कुंडलगिरी बताया गया है और उनकी कन्या ही माता रुक्मणि थी जिनका हरण इसी स्थान से श्रीकृष्ण ने शिशुपाल से विवाह के पूर्व किया था और वह भगवान कृष्ण की पत्नि बन देवी रूप में पूजी गई।

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