१२ किलो आभूषणों से होता है माँ महाकाली का श्रृंगार

सुरक्षा में तैनात होते है जवान

दमोह। नगर के महाकाली चौराहा अपने नाम अनुरूप माँ महाकाली की विराट प्रतिमा से अपनी पहचान स्थापित करता है। यहां हमेशा से माँ काली के स्वरूप में प्रतिमा स्थापित की जाती है जिसका विशेष पूजन अर्चन किया जाता है। वहीं भक्तों की आस्था के चलते प्रतिमा का श्रृंगार १२ किलो सोने सहित चाँदी के आभूषणों से होता है और उनकी सुरक्ष के लिए यहां सशस्त्र बल भी तैनात किया जाता है। वहीं माता की आरती और पूजन अर्चन के लिए बड़ी संख्या में भक्त उमड़ते है। माता की स्थापना आज भी किसी भव्य पंडाल में ना की जाकर एक पुराने मकान में की जाती है और दिन में उनके दरवार के पट बंद रहते है।

आजादी के समय से स्थापना

जानकार बताते है कि यहां प्रतिमा स्थापना का दौर वर्ष १९४७ से शुरु हुआ यानि करीब ७६ वर्ष पूर्व महाकाली की स्थापना भक्तों द्वारा की जाना शुरु हुई। प्रतिमा स्थापना के प्रारंभ में सराफा व्यापारियों ने की थी जिसके चलते माता का श्रृंगार आभूषणों से किए जाने की परंपरा शुरु हुई। इसके बाद अन्य लोगों का सहयोग और आस्था जुड़ती गई और वर्ष दर वर्ष बीतते हुए माता के आभूषणों की संख्या बढ़ती गई। महाकाली चौराहा निवासी 70 वर्षीय निर्गुण खरे बताते हैं कि उनके जन्म के पहले से यानी 76 साल से यहां पर महाकाली की प्रतिमा स्थापित की जा रही है। उस समय उनके पिता व अन्य वरिष्ठ जन धार्मिक आयोजनों में सहयोग करते हुए आयोजनों को भव्यता प्रदान करते है।

१२ किलो के आभूषण

प्रतिवर्ष नवरात्र पर विराजमान होने बाली माँ महाकाली का श्रृंगार आज १२ किलो सोने और १० किलो चांदी के आभूषणों से होता है। इन आभूषणों में सोने का हार, लॉकेट, नथ, चूड़ी के अलावा चांदी का मुकुट, करधनी, पायल, छत्र और अन्य श्रंगार सामग्री शामिल है। प्रारंभ में सुरक्षा के लिए स्थानीय लोग ही अपना सहयोग करते थे। समय के बदलाव के साथ और चोरी की घटनाओं को देखते हुए यहां करीब २२ वर्ष पूर्व सुरक्षा कर्मियों को तैनात किए जाने की व्यवस्था शुरु हुई। समिति के ज्ञानेश ताम्रकार ने बताया कि आस्था चलते पहले यहां पर कोई सुरक्षा नहीं होती थी, लेकिन समय बदला और मंदिरों में भी चोरी की घटनाएं होने लगीं, तब आयोजकों ने पुलिस से सुरक्षा की मांग की जिसके बाद यहां पर सुरक्षाकर्मियों की तैनाती शुरू हुई, जो आज भी जारी है। पहले केवल लाठीधारी पुलिसकर्मी तैनात किए जाते थे, लेकिन कुछ ही साल बाद सशस्त्र बल की तैनाती शुरू हो गई। अब यहां हर साल नौ दिनों तक हथियारों से लैस पांच सुरक्षाकर्मी 24 घंटे तैनात रहते हैं। दिन में उनकी संख्या दो हो जाती है, क्योंकि दिन भर माता के पट बंद रहते हैं। रात में सभी जवान ड्यूटी देते हैं। प्रतिमा विसर्जन के बाद इन आभूषणों को उतारकर सुरक्षित रखा जाता है उसके बाद इन पुलिसकर्मियों की ड्यूटी खत्म होती है। इन सभी आभूषणों को लाकर में सुरक्षित रखा जाता है।

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