वर्तमान परिदृश्य में न्यायायिक व्यवस्था से लोगों का विश्वास कमजोर हो रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है, जजों की निर्णय के प्रति जिम्मेदारी ना होना।
सिविल न्यायलयों के हालातों को देखे तो वहां जज कानूनो के इतर मनमाने फैसले देने से भी पीछे नहीं है, हालाकि लोगों के पास अपील का विकल्प होता है,लेकिन वर्षों न्याय के लिए लड़ाई लड़ने वाले पीड़ित पक्षकारों पर यह भारी पड़ता है। वहीं यदि आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति अगले न्यायालयों के लिए खुद को कैसे तैयार करें ये एक चुनौती हो जाती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता एमपी नायक बताते है कि वर्तमान में जजों की कमियों को सामने लाने का अधिकार आम आदमी से छीन लिया गया है और शिकायतों पर संज्ञान लिए जाने से भी परहेज किया जाने लगा है। हालात ऐसे है कि शिकायतकर्ता को वगैर साथ लिए जजों को क्लीन चिट दे दी जाती है और शिकायतों पर यदि कोई कमी सामने आती है तो उसे छिपा लिया जाता है।
तय होनी चाहिए जिम्मेदारी
इन हालातों पर जरूरी है कि न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा लौटाने के लिए जजों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। किसी भी गलत निर्णय के सुधार के साथ यह भी तय होना चाहिए कि यह एक मानवीय भूल थी या जानकर, मनमाने ढंग से किया गया कार्य। यदि ऐसा होता है तभी सत्यमेव जयते का वाक्य प्रभावी होगा।