बाघों के बाद चीतों को लेकर भी बनेगी जिले की पहचान, अभ्यारण के ज्यादातर बाघों की लोकेशन जिले के वन क्षेत्र में

नौरादेही अभ्यारण में चीतों के लाने का रास्ता साफ, केंद्रीय एजेंसी से स्थितियों के अध्ययन के बाद दी सहमति

दमोह। पशु प्रेमी और वाइल्ड लाइफ में रूचि रखने बालों को नौरादेही अभ्यारण से एक और अच्छी खबर सामने आ रही है। क्योकि अभ्यारण में जंगली जानवरों की बढ़ती तादात के बीच अब यहां एक बार फिर चीता बसाए जाने पर सहमति बनने लगी है। उल्लेखनीय है कि चीता परियोजना मेें नौरादेही अभ्यारण सबसे पहले चर्चा में आया था लेेकिन किन्ही कारणों से यह कूनो में विस्थापित किए गए। लेकिन नौरादेही अभ्यारण में बाघों की बढ़ती संख्या के बाद दूसरे वन्य प्राणिों के लिए पारिस्थितिक तंत्र भी बेहतर हुआ है जिससे इसका महत्व बढऩे लगा है और अभ्यारण्य अगले कुछ वर्षों में देश की नामी अभ्यारण्यों में शुमार हो सकता है।

वन मंत्रालय से मिली सहिमति

देश में विलुप्त हो चुके चीतों को पुर्नस्थापित करने और उनके संबंर्धन की मंशा से अफ्रीका के चीतों को देश में लाया गया है और उनके लिए बेहतर स्थितियां भी तैयार की जा रही है। इन स्थितियों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और भारतीय वन्यजीव संस्थान ने अपने वैज्ञानिक अध्ययन के बाद भविष्य में चीतों के लिए उपयुक्तक्षेत्र माना है। केंद्रीय एजेंसी की सहमति मिलने के बाद नौरादेही में चीतों के शिफ्ट होने की सुगबुगाहट तेज हो गई है, केंद्रीय एजेंसी की सहमति के संबंध में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव का पत्र भी सामने आया है जिसमें भविष्य में चीता एक्शन प्लान के तहत चीता का प्रमोचन भविष्य में नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में किया जा सकता है।

टाइगर रिजर्व की भी तैयारी

अभ्यारण को टाइगर रिजर्व बनाए जाने की मंजूरी नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने करीब दो माह पहले दे दी है। मंजूरी मिलने के बाद से मध्यप्रदेश का वन विभाग नौरादेही अभयारण्य को टाइगर रिजर्व में बदलने की तैयारियों में जुटा हुआ है। यह टाइगर रिजर्व प्रदेश के सबसे बड़े नौरादेही अभयारण्य और दमोह के सबसे छोटे वीरांगना रानी दुर्गावती अभयारण्य को मिलाकर बनाया जा रहा है।

कूनो से बेहतर स्थितियां

उल्लेखनीय है कि कूनो अभ्यारण में बसाए गए अफ्रीकी चीतों में से ६ चीतों की मौत भी हुई है जिसके बाद अब इनकी सुरक्षा व बेहतर स्थान के लिए लगातार कार्य किए जाने लगे है। इन हालातों में नौरादेही काफी बेहतर है। यहां अन्य वन क्षेत्र की तुलना में सबसे ज्यादा खुले घास के मैदान हैं जिसमें करीब 400 वर्ग किमी एरिया में चीतों को रखने के लिए मैदान संरक्षित किए गए हैं और वहां फेंसिग कराए जाने की प्लानिंग भी चल रही है। वहीं पूर्व में वाघों को बसाए जाने के प्रोजेक्ट को भी सफलता मिली है, इसके अलावा वन अमला यहां चीतल की बसाहट भी ज्यादा से ज्यादा कर रहा है ताकि इन जानवरों को भोजन की भी कोई कमी न हो इन सभी स्थितियों को देखते हुए वर्तमान में नौरादेही अभ्यारण्य देश में चीतों की बसाहट के लिए बेहतर विकल्प बन गया है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण

लुप्त प्राय या लुप्त हो चुके वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जाते हैं और इसके लिए इस क्षेत्र से जुड़ी हुई अंतरराट्रीय संस्था इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन नेजर (आईयूसीएन) द्वारा ट्रांसलोकेशन यानी स्थांतरण की पहल की जाती है इसके पीछे मंश यह होती है कि कोई भी लुप्तप्राय प्राणी की आबादी एक ही स्थान पर ना रहे ताकि एकाएक किसी अनहोनी समस्या या बीमारी के चलते उनकी प्रजाती व आवादी पर खतरा न आए ऐसे में अफ्रीका में मौजूद चीतों का संरक्षण भी अन्य स्थानों पर रखकर किया जाएगा इस सोच को मूर्त रूप देने के लिए जिसके लिए भारत में नौरादेही अभ्यारण्य चुना गया है। इन हालातों से यह तय है कि भविष्य वन प्राणियों व वन्य जीवन से लगाव रखने बाले लोगों के लिए यह अभ्यारण सबसे बेहतर पर्यटन स्थान होगा।


तेंदूखेड़ा से विशाल रजक


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *