चुनावों में अभी भी जारी है वोट कटवा की राजनीति, दमोह से मैदान में 4 जयंत तो 3 अजय

प्रमुख सियासी दलों के साथ वागी निर्दलीय को रोकने के लिए भी लगाई जा रही जुगत

दमोह। विधानसभा चुनाव 2023 में गुरुवार को नाम बापसी का दौर खत्म होने के बाद मतदाताओं के बीच उम्मीदवारों की स्थिति साफ हो गई है। जिले के चुनावी समीकरणों को देखे तो यहां मुख्य रूप से प्रमुख सियासी दलों के बीच ही मुकाबले की संभावना है और पथरिया और जबेरा में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार दिख रहे है। प्रमुख उम्मीदवारों को रोकने के लिए सियासी दल अपनी अपनी तिकड़म लगाने से भी पीछे नहीं है। ऐसे में इस चुनाव में भी वर्षों पुरानी वोट कटवा रणनीति जारी है जिसमें मतदाताओं के बीच एक जैसे नामों को लेकर उम्मीदवार उतारना भी शामिल है जिससे मतदाता उम्मीदवारों को लेकर भ्रमित हो जाए और वोट बट सकें। हालाकि यह कितना कारगर होगा यह स्पष्ट नहीं है।

मिले जुले नामों से उम्मीदवार

जिले की विधानसभा स्तर पर देखे तो प्रमुख सियासी दल ही नहीं बल्कि अन्य सियासी दलों के ऐसे उम्मीदवार जो उम्मीदवारों के बीच अपनी पहुंच रखते है उनके मिले जुले नाम से निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में है। जहां विधानसभा दमोह में भाजपा के उम्मीदवार जयंत मलैया के साथ तीन और जयंत भी मैदान में है जिससे कुल ४ जयंत मैदान में है। भाजपा के साथ कांग्रेस को भी इन्हीं स्थितियों का सामना करना होगा जिसमें कांग्रेस के अजय टंडन के साथ दो और अजय भी मैदान में है जिससे मतदाताओं के बीच अब ३ अजय होंगे। रोचक बात यह भी है कि पूर्व में विधानसभा चुनाव 2018 और उपचुनाव 2021 में पहले कांग्रेस और फिर भाजपा से उम्मीदवार रहे राहुल सिंह भले ही इस वर्ष मैदान में ना हो लेकिन इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 3 राहुल मैदान में है।

जबेरा में भी तीन नामों का जोर

विधानसभा जबेरा में जहां इस बार त्रिकोणीय संघर्ष के आसार दिख रहे है, ऐसे में यहां पर भी तीन उम्मीदवारों के मिले जुले नामों का जोर ज्यादा है। यहां भाजपा के धर्मेन्द्र लोधी के साथ एक और धर्मेन्द्र निर्दलीय प्रत्याशी है, वहीं कांग्रेस के प्रताप लोधी के साथ दो और प्रताप भी निर्दलीय के रूप में चुनावी मैदान में उतरे है। इसके अलावा भाजपा से बागी होकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से चुनावी मैदान में उतरे विनोद राय के साथ दो और विनोद भी मैदान में उतरे है।

फिर चुनाव चिन्ह पर होता है जोर

एक जैसे नामों के मैदान में होने पर भले ही सियासी दलों को अब ज्यादा फर्क नहीं पड़ता हो, लेकिन इसके बाद भी चुनावी प्रचार में उम्मीदवारों के लिए चुनाव चिन्ह महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार के दौरान उम्मीदवार अपने चुनाव चिन्ह को ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं तक पहुंचाने का प्रयास करते है ताकि लोग नाम से भ्रम की स्थिति में चुनाव चिन्ह से पहचान कर सकें। ऐसे में इस चुनावों में भी पुराने तौर तरीके सामने आए है इससे कितना फर्क होगा यह मतगणना के बाद स्पष्ट हो जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *