कूनों में लगातार हो रही मौत के बाद अब हो रहा विचार, फेंसिंग की भी तैयारियां

तेंदूखेड़ा/तीन जिले की सीमा क्षेत्र में फैले हुए 15 बाघों सहित अन्य जंगली जानवरों का रहवास बन चुका देश का सबसे बड़ा अभयारण्य नौरादेही चीतों के लिए अनुकूल माना गया था और सर्वप्रथम यहां पर चीतों को लाए जाने का विचार रखा गया था लेकिन यहां के अफसर व जनप्रतिनिधियों की इसमें कोई खास रुचि नहीं दिखी जिसके चलते लिहाजा अब तक नौरादेही चीतों की उपस्थिति से दूर है और चीतों की प्रस्तावित शिफ्टिंग भी टल रही है। उल्लेखनीय है कि वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून की टीम ने अफ्रीकन चीतों को रखने के लिए कूनो पालपर, गांधीसागर और नौरादेही तीनों को उचित माना था।
अब फिर अभ्यारण पर नजर
कूनो पार्क में लगातार हो रही चीतों के मौत के बाद अब शासन प्रशासन द्वारा अन्य अभ्यारण मेन चीतों की शिफ्टिंग करने की तैयारी में नजर आ रहा है और चीता प्रोजेक्ट को लेकर नौरादेही में 10 साल से तैयारी चल रही है। अभयारण्य में बसे गांवों के विस्थापन के साथ 400 वर्ग किमी एरिया चीतों के लिए संरक्षित भी किया है। हालाकि कूनों में लगातार सामने आई मौत के बाद अभी अधिकारी चीतों की नौरादेही में शिफ्टिंग के बाद इस जोखिम से बचना चाहते हैं। जिससे पूरी मुहिम शिथिल पड़ी
टाईगर रिजर्व से बदलेंगे हालात
चीता परियोजना के तहत नौरादेही का चयन किया गया था इसे अब चीते बसाने के लिए तैयार किया जा रहा है। दरअसल केन बेतवा लिंक परियोजना से 6017 हेक्टेयर वनभूमि डूब रही है इसमें पन्ना टाइगर रिजर्व का 4141 हेक्टेयर कोर एरिया है। इसकी भरपाई नौरादेही व रानी दुर्गावती अभ्यारण्य बनाकर की जा रही है। नौरादेही अभ्यारण्य क्षेत्रफल में प्रदेश का सबसे बड़ा वन्यजीव अभ्यारण्य हैं और राष्ट्रीय बाघ परियोजना की सफलता के कारण भी इसके टाइगर रिजर्व बनने का दावा मजबूत होता है। वन विभाग की वन्यप्राणी शाखा ने1414वर्ग किलोमीटर का कोर और 924वर्ग किलोमीटर का बफर क्षेत्र प्रस्तावित किया है इन दोनों अभ्यारण्य के बीच एक कॉरिडोर बनेगा जो अब टाइगर रिजर्व का हिस्सा होगा।
अनूकूल बातावरण चीतों को
नौरादेही अभ्यारण्य में क्षेत्रफल के साथ चीतों के लिए अनुकूल वातावरण यहां पर उपलब्ध है और यह वन्यजीव सेंचुरी का स्थान सबसे अलग माना जाता है। सागर दमोह और नरसिंहपुर जिले में फैला है नौरादेही अभ्यारण्य की स्थापना वर्ष 1975 में की गई थी अभ्यारण्य में जानवरों की प्यास बुझाने के लिए कई बड़े तालाबों के अलावा अभ्यारण्य से गुजरी हुई व्यारमा नदी व बमनेर नदी एक बड़े हिस्से में पानी की कमी को पूरा करती है बाघों का कुनबा और घास के मैदान के साथ भोजन की प्रचुरता से यहां चीते सुरक्षित रह सकेंगे और खुद को यहां के हालातों में तैयार कर सकेंगे।

पूर्व में थे चीते
अभयारण्य में लुप्त होने के पहले चीतों के प्राकृतिक वास के प्रमाण मिले हैं। पूर्व में इस क्षेत्र में अलग सेंचुरी नहीं थी और पन्ना टाइगर रिजर्व से यहां बाघों का मूवमेंट होता रहा है। पन्ना के अलावा करीब 150 किमी के दायरे में सिवनी का पेंच, उमरिया के पास बांधवग?, मंडला का कान्हा टाइगर रिजर्व हैं। इसागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले में फैली नौरादेही सेंचुरी 1975 में स्थापित की गई थी। यह 1197 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है। और अब नौरादेही को मिलाकर रानीदुर्गावती टाइगर रिजर्व बनाने की तैयारी है और नौरादेही में बाघ शिफ्टिंग प्रोजेक्ट सफल रहा है और १५ में से ज्यादातर बाघ यही जन्में है।

कूनो या फिर अफ्रीका से आने वाले चीतों को नौरादेही लाने का अभी तक कोई प्लान नहीं है। जैसा वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश मिलेंगे उस दिशा में काम करेंगे।
एए अंसारी, डीएफओ , नौरादेही अभ्यारण

तेंदूखेड़ा से सहयोगी संवाददाता
विशाल रजक की रिपोर्ट