वन अमले और ठेकेदारों की मिलीभगत से हो रहा उपयोग, पंचायतें लगा रही खरीदी का बिल
दमोह/तेंदूखेड़ा। क्षेत्र की ग्राम पंचायतों में सरकारी मद से कराए जा रहे निर्माण कार्यों में अवैध रूप से पत्थरों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे राजस्व को बड़ी क्षति पहुंच रही है लेकिन जिम्मेदार इस और कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। सबसे ज्यादा अवैध दोहन वन क्षेत्र से किया जा रहा है।
गौरतलब है कि तेन्दूखेड़ा उप वनमंडल के अंतर्गत चार रेंज आते हैं जहां वन विभाग की भूमि से लगी हुई है इन क्षेत्रों में वन माफिया और ठेकेदार वन अमले से मिलकर अवैध खनन कर रहे हैं और कार्यवाही का डर न होने से खनन माफिया बैखोफ जंगल के पत्थरका खनन कर रहे है।
पंचायतों में हो रहा उपयोग
जिले के उप वनमंडल तेन्दूखेड़ा के अंतर्गत तेन्दूखेड़ा, तारादेही, तेजगढ़ और झलोन वन परिक्षेत्रों में विभिन्न जगहों से निकाले जा रहे हैं पत्थर को खनन माफिया और ठेकेदारों द्वारा मजदूरों और ट्रैक्टर ट्राली से ग्राम पंचायतों में बन रही खकरी बाउंड्री पुलिया, स्टापडेम, सड़क आदि में खपाया जा रहा है। ऐसे में वन संरक्षण के लिए सरकार पौधरोपण के अलावा जंगलों की सुरक्षा एवं उनके संरक्षण पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च करती है लेकिन वन विभाग के अधिकारी अपने लाभ के लिए खनन माफिया और ठेकेदारों से अवैध खनन कराने पर आमादा है। इस समय ग्राम पंचायत तेन्दूखेड़ा उप वनमंडल के चारों रेंज की सीमा क्षेत्र से लगी हुई ग्राम पंचायतों में सरपंच सचिव द्वारा खकरी का निर्माण कार्य कराया जा रहा है।
क्षेत्र में नहीं वैध खदान
फिलहाल वन परिक्षेत्रों में एक भी घोष विक्रय खदान नहीं है जिससे पत्थर की खरीदी की जा सके ऐसे में यह तय है कि अवैध खनन किया जा रहा है और साथ ही साथ पंचायत में इस खरीद का बिल भी लगाया जा रहा है जिससे यह भी तय है कि यह बिल गलत या फर्जी है।यह सब विभागीय अधिकारियों के संज्ञान में होने के बावजूद भी ग्राम पंचायतों में अवैध पत्थरों से किए जा रहे निर्माण कार्यों पर जुर्माना नहीं किया गया है न ही अब तक किसी वन माफिया पर वसूली की कार्रवाई हुई। वैध खदान नहीं होने के बावजूद इतनी बड़ी मात्रा में पत्थर आने के बाद क्षेत्र के लोगों ने अवैध पत्थर निकालने की शिकायत अधिकारियों से भी की, लेकिन पर वह एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं और कार्यवाही के लिए वन अधिकारी पुलिस एसडीएम या खनन अधिकारी को अवगत कराने की बात कहते हैं और वन विभाग के कर्मचारी सुरक्षा का हवाला देकर कार्रवाई से बचते हैं। ऐसे में पंचायतों में किए जा रहे करोड़ो के निर्माण में इस तरह से अवैध पत्थरों का और वह भी वन संपदा का उपयोग सामान्य नहीं माना जा सकता लेकिन फिलहाल सभी कार्यवाही के लिए जिम्मेदार लोग कार्रवाई से दूर हैं जो एक बड़े सिंडिकेट की ओर इशारा करता है।